Ghazals of Tariq Qamar
नाम | तारिक़ क़मर |
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अंग्रेज़ी नाम | Tariq Qamar |
जन्म स्थान | Uttar Pradesh |
ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ
ये रोज़-ओ-शब की मसाफ़त ये आना जाना मिरा
ये आरज़ू थी उसे आइना बनाते हम
वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे
उस ने इक बार भी पूछा नहीं कैसा हूँ मैं
सारे ज़ख़्मों को ज़बाँ मिल गई ग़म बोलते हैं
रेआया ज़ुल्म पे जब सर उठाने लगती है
पाँव जब हो गए पत्थर तो सदा दी उस ने
नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया
न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी
ख़ुश्क आँखों से कहाँ तय ये मसाफ़त होगी
कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए
कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग
एक तस्वीर जलानी है अभी
देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे
चश्म-ए-बीना! तिरे बाज़ार का मेआर हैं हम
बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए
अपनी पलकों के शबिस्तान में रक्खा है तुम्हें