वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
जो संग है तो कहीं रहगुज़र में रक्खा जाए
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अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है
इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था