उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया
ख़ुद आप ही तिरी आदत ख़राब की हम ने
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
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मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
फिर इस से क़ब्ल कि बार-ए-दिगर बनाया जाए
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ