तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
मिरे चराग़ तो लगता था रोए अब रोए
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वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
ज़मीन इतनी नहीं है कि पाँव रख पाएँ
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है
ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं
बे-वज्ह न बदले थे मुसव्विर ने इरादे
ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में