किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से
कोई दिन में मिरा रौशन सितारा होने वाला है
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मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
खोल देते हैं पलट आने पे दरवाज़ा-ए-दिल
अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था
हवा का हुक्म भी अब के नज़र में रक्खा जाए
मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा