अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
हम ऐसे लोग जो ख़ुद से कलाम करते हैं
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं
किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से
बे-वज्ह न बदले थे मुसव्विर ने इरादे
कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए
तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया
खोल देते हैं पलट आने पे दरवाज़ा-ए-दिल
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है