अभी फिर रहा हूँ मैं आप-अपनी तलाश में
अभी मुझ से मेरा मिज़ाज ही नहीं मिल रहा
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कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
वो आईना है तो हैरत किसी जमाल की हो
पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था
अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं
जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँ