Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_7aede0f53de2c8092fa8631cf5a7a3b3, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी - तारिक़ नईम कविता - Darsaal

मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी

मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी

मैं देख सकता हूँ हद्द-ए-नज़र से आगे भी

ये रास्ता मिरे अपने निशाँ से आया है

मिरे ही नक़्श-ए-कफ़-ए-पा थे मुझ से पहले भी

मैं उस की आँख के मंज़र में आ तो सकता हूँ

वो कम-निगाह मुझे हाशिए में रक्खे भी

मैं उस के हुस्न की थोड़ी सी धूप ले आया

वो आफ़्ताब तो ढलने लगा था वैसे भी

मिरे कहे पे मुझे चाक पर तो रखता है

मगर ये चाक से कहता नहीं कि घूमे भी

अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं

बदल गए हैं मिरे दोस्तों के लहजे भी

मैं एक शीशा-ए-सादा हूँ और मयस्सर हूँ

किसी की आँख मिरे आर-पार देखे भी

(710) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Tariq Naeem. is written by Tariq Naeem. Complete Poem in Hindi by Tariq Naeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.