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मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए - तारिक़ नईम कविता - Darsaal

मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए

मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए

बदन उतार दिया ख़ाक से गुज़रते हुए

जमाल मुझ पे ये इक दिन में तो नहीं आया

हज़ार आईने टूटे मिरे सँवरते हुए

अजब नज़र से चराग़ों की सम्त देखा है

हवा ने ज़ीना-ए-पिंदार से उतरते हुए

इक-आध जाम तो पी ही लिया था हम ने भी

ख़ुमार-ए-ख़ाना-ए-दुनिया की सैर करते हुए

न जाने क्या दिल-ए-सय्याद में ख़याल आया

वो रो दिया था मिरे बाल-ओ-पर कतरते हुए

अब आसमान भी कम पड़ रहे हैं उस के लिए

क़दम ज़मीन पर रक्खा था जिस ने डरते हुए

वही सितारा सितारों का हुक्मराँ ठहरा

लरज़ रहा था जो पहली ज़क़ंद भरते हुए

वो आइना था मैं तारिक़-'नईम' टूट के भी

हज़ार अक्स बनाता गया बिखरते हुए

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In Hindi By Famous Poet Tariq Naeem. is written by Tariq Naeem. Complete Poem in Hindi by Tariq Naeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.