ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
धूप ने हिज्र की दीवार उठाई घर में
सैल ऐसा था कि सब शहर-ए-बदन डूब गया
रात बारिश ने अजब बज़्म सजाई घर में
मुंतज़िर कितने रहे बंद दरीचे सारे
तेरी आवाज़ न फिर लौट के आई घर में
दर-ओ-दीवार महकने लगे अंदाज़ों से
मैं ने तस्वीर तिरी जूँ ही लगाई घर में
यूँ ही इक रात उसे दिल से निकाला क्या था
फिर मुझे रास कोई रात न आई घर में
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