मैं हबीब हूँ किसी और का मिरी जान-ए-जाँ कोई और है
मैं हबीब हूँ किसी और का मिरी जान-ए-जाँ कोई और है
सर-ए-दास्ताँ कोई और है पस-ए-दास्ताँ कोई और है
ये अज़ाब-ए-दर-ब-दरी मियाँ है अज़ल से मेरा रफ़ीक़-ए-जाँ
मैं मकीन हूँ कहीं और का मिरा ख़ाक-दाँ कोई और है
ये तो अपना अपना नसीब है किसे कितनी क़ुव्वत-ए-पर मिली
तिरा आसमाँ कोई और है मिरा आसमाँ कोई और है
ये जो ज़िंदगी की हैं गुत्थियाँ ये सुलझ के भी न सुलझ सकीं
हैं अगरचे वज्ह-ए-सुकून हम यहाँ शादमाँ कोई और है
मुझे शाइ'री का हुनर मिला मुझे गंज-ए-ला'ल-ओ-गुहर मिला
मिरे हर्फ़ में मिरे लफ़्ज़ में जो है बे-कराँ कोई और है
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