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लहू को पालते फिरते हैं हम हिना की तरह - तारिक़ मसऊद कविता - Darsaal

लहू को पालते फिरते हैं हम हिना की तरह

लहू को पालते फिरते हैं हम हिना की तरह

बदल गए हैं मज़ामीं तिरी वफ़ा की तरह

हम ऐतबार-ए-वफ़ा का गुमाँ करें भी तो क्या

वो आज सूरत-ए-गुल हैं तो कल सबा की तरह

उसे तो संग-ए-रऊनत ने कर दिया घायल

मैं टूट टूट गया शीशा-ए-अना की तरह

झटक के ले गया भीगी रुतों के इम्कानात

निकल गया मिरे सहरा से फिर हवा की तरह

कभी खुले भी दर-ए-मुस्तजाब-ए-चारा-गराँ

बहुत दिनों से तही-दस्त हूँ दुआ की तरह

असा छिना है तो कासा भी ले उड़ा कोई

नवा नवा हूँ सर-ए-शहर-ए-जाँ-गदा की तरह

लगी है शहर में इक भीड़ मरने वालों की

ये किस ने डाली है मक़्तल में ख़ूँ-बहा की तरह

कहीं तो उस के मरासिम में झोल था तारिक़

वगर्ना हम से न मिलता वो आश्ना की तरह

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In Hindi By Famous Poet Tariq Masood. is written by Tariq Masood. Complete Poem in Hindi by Tariq Masood. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.