Ghazals of Tariq Butt
नाम | तारिक़ बट |
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अंग्रेज़ी नाम | Tariq Butt |
वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं
नज़र का नश्शा बदन का ख़ुमार टूट गया
कुछ दूर तक तो इस की सदा ले गई मुझे
है किस का इंतिज़ार खुला घर का दर भी है
बुझे तो दिल भी थे पर अब दिमाग़ बुझने लगे
भूली हुई राहों का सफ़र कैसा लगेगा
अब नए रुख़ से हक़ाएक़ को उलट कर देखो