कोई शिकवा था शिकायत थी गिला था क्या था
कोई शिकवा था शिकायत थी गिला था क्या था
उस ने जो कान में चुपके से कहा था क्या था
भूल कुछ मुझ से हुई थी कि ख़ता उस की थी
जो सबब तर्क-ए-तअल्लुक़ का बना था क्या था
सोचता हूँ वो था दीवाना कि था सौदाई
प्यार में तू ने जो इक नाम दिया था क्या था
बारहा फ़ोन पे उस ने जो कहा था मुझ से
सामने क्यूँ वो मिरे कह न सका था क्या था
आज तक भी न समझ पाया मैं आँखों में तिरी
मक्र-ए-रंगीं था कि फिर रंग-ए-वफ़ा था क्या था
था अगर ग़ैर मुझे छोड़ के जाने वाला
क्यूँ गई रात मैं फिर सो न सका था क्या था
उस की गुफ़्तार में लग़्ज़िश थी निगाहें बेचैन
उस की आँखों में कोई राज़ छुपा था क्या था
क्यूँ वो मग़रूर सर-ए-बज़्म खड़ा था 'गौहर'
उस की फ़ितरत थी कि दौलत का नशा था क्या था
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