दिलों में बुग़्ज़ के ख़ाने न होते
दिलों में बुग़्ज़ के ख़ाने न होते
तो अपने लोग बेगाने न होते
वफ़ा को ढूँडती फिरती ये दुनिया
अगर हम जैसे दीवाने न होते
न हम को ग़म अगर आता मयस्सर
तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगी जाने न होते
कहाँ था हम से रिंदों का ठिकाना
अगर बस्ती में मय-ख़ाने न होते
न लुटते हम अगर यारो लुटेरे
हमारे जाने-पहचाने न होते
कहाँ हम बोझ दिल का करते हल्का
जो रोने को तिरे शाने न होते
ज़बान-ए-हाल पर अच्छा था 'गौहर'
अगर माज़ी के अफ़्साने न होते
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