तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
लेकिन मिरा वक़ार ये इमदाद खा गई
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कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
कितना बोद है मेरे फ़न और पेशे के माबैन
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
दिहात के वजूद को क़स्बा निगल गया
छत की कड़ियाँ जाँच ले दीवार-ओ-दर को देख ले
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
हम हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ में भी मोहतरम हुए