'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
बहरे हुए हैं कान मशीनों के शोर से
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उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज
दिहात के वजूद को क़स्बा निगल गया
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है