शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें
'तनवीर' माँ के हाथ में अपनी कमाई दे
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अब तक मिरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिहात के वजूद को क़स्बा निगल गया
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को