जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज
वो शख़्स ख़ुद बहुत बड़ा ज़ेहनी मरीज़ है
Faiz Ahmad Faiz
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आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
'तनवीर' अब तू हल्क़ से भोंपू का काम ले
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
सब की निगाह में तिरे गोदाम आ गए
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
छत की कड़ियाँ जाँच ले दीवार-ओ-दर को देख ले
तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है