आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म
शायद इसी सूरत ही सुकूँ पाए मिरा जिस्म
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ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है
ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
तेरी तो आन बढ़ गई मुझ को नवाज़ कर
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पालो
मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
अब तक मिरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
जो कर रहा है दूसरों के ज़ेहन का इलाज