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उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है - तनवीर सिप्रा कविता - Darsaal

उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है

उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है

वो बौना किस क़दर मेरे क़द-ओ-क़ामत से जलता है

कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पा लूँ

वो पौदा टूट जाता है जो ला-महदूद फलता है

मसाफ़त में नहीं हाजत उसे छितनार पेड़ों की

बयाबाँ की दहकती गोद में जो शख़्स पलता है

मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को

उन्ही के वास्ते अब मेरा बेटा भी मचलता है

मिरी मजबूरियाँ देखो उसे भी मो'तबर समझूँ

जो हर तक़रीर में अपना लब-ओ-लहजा बदलता है

बदन के साथ मेरी रूह भी 'सिपरा' कथक नाचे

ग़ज़ल साँचे में जब कोई नया मज़मून ढलता है

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In Hindi By Famous Poet Tanveer Sipra. is written by Tanveer Sipra. Complete Poem in Hindi by Tanveer Sipra. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.