सुर्ख़ फंदे सुनहरी मालाएँ
तेरे पहलू में बर्फ़ का टुकड़ा
जाने पिघलेगा कौन सी रुत में
अब तो पैराहन-ए-हिमाला भी
मिस्ल-ए-दामन-नुमा-ए-क़ैस हुआ
बाल खुलने लगे हैं शीशम के
बुध की सूरत जुमूद की रुत में
बे-नियाज़-ए-लिबास-ए-तख़मीना
थे ज्ञानी जो वो सफ़ेदे भी
हैं सर-ए-राह महव-ए-बोस-ओ-कनार
अपनी ख़ुश-क़ामती पे इतराती
पहनने वाली हैं खजूरें भी
सुर्ख़ फंदे सुनहरी मालाएँ
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