दोराहा

अजब दोराहे पे आ खड़ा हूँ

इधर तिरे हुस्न की धनक है

उधर अदू की कमीन-गाहों में असलहे की चमक दमक है

उधर तिरी नुक़रई हँसी है

इधर समाअ'त-ख़राश चीख़ों का ज़ेर-ओ-बम है

उधर तिरे तरह जिस्म

ज़िंदगी की हरारतों का नक़ीब बन कर बुला रहा है

इधर अजल नित ज़िंदगी को

थपक थपक कर सुला रहा है

अजब दोराहे पे आ खड़ा हूँ

मैं सोचता हूँ

कि कौन सा साज़-ए-फ़न उठाऊँ

क़लम उठाऊँ कि गन उठाऊँ

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In Hindi By Famous Poet Tanveer Monis. is written by Tanveer Monis. Complete Poem in Hindi by Tanveer Monis. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.