मुझे अज़ीज़ है बे-एहतियाती-ए-सादा
न शौक़ है न हुनर उस को आज़माने का
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कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए
जब सितारा थक गया
किस तरह उस को बुलाऊँ ख़ाना-ए-बर्बाद में
ख़ार चुनते हुए
अन-देखी लहरें
रात के पड़ाव पर
सुनाओ मुझे भी एक लतीफ़ा
अदम कथा
आख़िरी पत्तियों में
सूरज सारा शहर डराता रहता है
कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है
इंतिज़ार