लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना
आतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना
Parveen Shakir
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छोटी सी खिड़की है
आख़िरी पत्तियों में
कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है
इंतिज़ार
ग़म-ए-ज़माना जब न हो ग़म-ए-वजूद ढूँड लूँ
सुनाओ मुझे भी एक लतीफ़ा
अदम कथा
आसमान-ए-यास पर खोया सितारा ढूँढना
इस ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे मुझे नाज़ बहुत है
जचती नहीं कुछ शाही-ओ-इम्लाक नज़र में
तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का