रात के पड़ाव पर
रात ने अपनी मेहरबान बाहें फैला दीं
और सिसकियों का जवार भाटा तारीकियों से लिपट गया
तस्वीरों को पहचानने वाले दिलों के दीपक बुझते गए
और उन सारी अंजान तस्वीरों के दरमियान
हैरान आँखें हैं
और सिसकियों का जवार भाटा
सिसकियाँ जिन्हें ज़िंदगी के तवील दिनों ने पनाह न दी
और किरनों पर भागते हुए
किसी ने नहीं सोचा
नशेब में घाटियों के दरमियान रात ठहरती है
कम अक़्ल मुसाफ़िर क़दमों की समझ में न आया
कि ज़िंदगी चरिन्दों और हद्द-ए-निगाह तक फैली घास का मुआहिदा नहीं है
आवाज़ की सम्तें मुतअय्यन हो गईं
और तक़लीद के आसेब लफ़्ज़ों के पाक-दामन सय्यारों को रौंदते चले गए
अनथक मेहनतों की समझ में कुछ न आया
यहाँ तक कि सोच की सुनहरी रौशनियाँ थक कर गिर पड़ें
नशेब और नशेब की जानिब
जुनून का नशेब
जहाँ रात ठहरती है
और पुर-असरारियत का सानेहा
जहाँ सराबों के असरार खुल गए
और जहाँ मुसाफ़िर क़दमों और अनथक मेहनतों और सिसकियों के जवार भाटा की दोस्ती है
ये रात का पड़ाव है जहाँ
आँखों की तमाम अन-गिनत सड़कें
ख़ुदा हाफ़िज़ की भूल भुलैयों में गुम हो जाती हैं
(684) Peoples Rate This