हम दोनों में से एक
हम बहुत थोड़े लोग हैं
वो बहुत ज़्यादा
हम ला-परवाह हैं ख़ुद अपनी ज़ात से
हमें एक दूसरे के मफ़ादात की क्या फ़िक्र
वो आपस में शीर-ओ-शकर हैं
और हमें कमज़ोर रखने के लिए
साज़-बाज़ करते रहते हैं
उन की तादाद बढ़ती जा रही है
जों जों हमारे लोग
हमें छोड़ कर
उन के पास जा रहे हैं
हम किसी को नहीं रोकते
बल्कि कोई एक क़दम भी आगे बढ़ाए
तो फ़र्ज़ कर लेते हैं
कि वो उन की जानिब बढ़ रहा है
वो मुंतज़िर देखते रहते हैं
कब कोई हमारे दाएरे से थोड़ा सा बाहर निकले
और वो उसे रिझा कर अपने साथ मिला लें
उन के पास गए लोगों में
हो सकता है अब कोई अफ़सोस करता हो
और वापस आना चाहे
मगर हम उस की परवाह बहुत कम करते हैं
और ये मुमकिन भी नहीं है
क्यूँकि
उन के साथ वक़्त ज़ाए करने वालों के पास
हमारे लिए वक़्त बच नहीं सकता
वो इंतिज़ार में हैं
बस हम में से एक आख़िरी बच जाए
तो वो उसे पत्थर मार कर हलाक कर डालें
हम एक दूसरे को देख रहे हैं
और डर रहे हैं
क्या हम दोनों में से कोई
दूसरे को पत्थर मारेगा!
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