आज़ादी से नींदों तक
ज़िंदगी की चट्टानों से
सज़ाओं का समुंदर टकराता है
और सफ़ेद चट्टानें समुंदर की काली कर देने वाली ताक़त से बे-ख़बर
ख़्वाबों के ग़ुरूर से लबरेज़ हैं
पानी चट्टानों में रास्ते बनाता रहता है
और ऐसे में कोई नहीं जानता
हम आज़ादी के जोग में
तन्हाई के किस किस जंगल में भटके हैं
आज़ादी के लिबास को अपना बदन समझ कर
वहशी सन्नाटों की आमद से बे-ख़बर
हम कहाँ कहाँ भटके हैं
और जब लिबास फट जाते हैं
हम इन चिथड़ों को अपने बे-लिबास तन्हाइयों में
यूँ छुपा लेते हैं
जैसे ज़िंदा माँ की आँखें मुर्दा बच्चे की आख़िरी दीदार को छुपा लेती हैं
तो ऐसे में समुंदर सैलाब हो जाता है
और सफ़ेद चट्टानें
सज़ाओं में दफ़्न
अपने अलावा सब कुछ भूल जाने पर मजबूर हो जाती हैं
हम सैलाब में न बहे जाने का दुख लिए
नींदों तक आ जाते हैं
और हम चट्टानों से गुज़रने वाले पानी के रास्ते बंद नहीं कर सकते तो
हँस देते हैं
और नींदों की भीक जम्अ' करते करते
वहशी सन्नाटों की आमद के हौल में
हम सोना भूल जाते हैं
(721) Peoples Rate This