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मिल भी जाता जो आब आब-ए-बक़ा क्या करते - तनवीर अहमद अल्वी कविता - Darsaal

मिल भी जाता जो आब आब-ए-बक़ा क्या करते

मिल भी जाता जो आब आब-ए-बक़ा क्या करते

ज़िंदगी ख़ुद भी थी जीने की सज़ा क्या करते

सरहदें वो न सही अपनी हदों से बाहर

जो भी मुमकिन था क्या उस के सिवा क्या करते

हम सराबों में सदा फूल खिलाते गुज़रे

ये भी था आबला-पाई का सला किया करते

जिस को मौहूम लकीरों का मुरक़्क़ा' कहिए

लौह-ए-दिल पर था यही नक़्श-ए-वफ़ा क्या करते

अब वो शालों का क़फ़स हो कि लहू की ख़ुश्बू

दिल पे लहराती रही बर्क़-ए-अदा क्या करते

माँगने को तो यहाँ अपने सिवा कुछ भी न था

लब पे आता भी अगर हर्फ़-ए-दुआ क्या करते

हम को ख़ुद अर्ज़-ए-तमन्ना का सलीक़ा भी न था

वो भी 'तनवीर' भला उज़्र-ए-जफ़ा क्या करते

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In Hindi By Famous Poet Tanveer Ahmad Alvi. is written by Tanveer Ahmad Alvi. Complete Poem in Hindi by Tanveer Ahmad Alvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.