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क्या ज़रूरी है कोई बे-सबब आज़ार भी हो - तनवीर अहमद अल्वी कविता - Darsaal

क्या ज़रूरी है कोई बे-सबब आज़ार भी हो

क्या ज़रूरी है कोई बे-सबब आज़ार भी हो

संग अपने लिए शीशे का तलबगार भी हो

दिलबरी हुस्न का शेवा है मगर क्या कीजे

अब ये लाज़िम तो नहीं हुस्न वफ़ादार भी हो

ज़ख़्म-ए-जाँ वक़्त के काँटों से भी सिल सकता है

क्या ज़रूरी है कि रेशम का कोई तार भी हो

फ़ासला रखिए दिलों में मगर इतना भी नहीं

दरमियाँ जैसे कोई आहनी दीवार भी हो

दो किनारों की तरह साथ ही चलते रहिए

अब ज़रूरी तो नहीं कोई सरोकार भी हो

कोई इस दर्द के रिश्ते को निभाए क्यूँ कर

चारासाज़ी जो करे वो कोई ग़म-ख़्वार भी हो

शीशा-ए-जाँ को बचाने की ये कोशिश 'तनवीर'

शायद इस शहर-ए-सितम के लिए बेकार भी हो

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In Hindi By Famous Poet Tanveer Ahmad Alvi. is written by Tanveer Ahmad Alvi. Complete Poem in Hindi by Tanveer Ahmad Alvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.