अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं
अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं
जो वक़्त लिख नहीं पाया वो बाब बाक़ी हैं
सज़ा जो अगले सहीफ़ों में थी तमाम हुई
मगर सहीफ़ा-ए-दिल के अज़ाब बाक़ी हैं
करोगे जमा भला कैसे दिल के शीशों को
अभी तो दश्त-ए-फ़लक में शहाब बाक़ी हैं
उड़ा के ले गई आँधी वो हर्फ़ हर्फ़ किताब
जो सफ़हा सफ़हा हैं दिल के सराब बाक़ी हैं
जो गीली रेत पे तूफ़ाँ बने गुज़र भी गए
वो भीगी पलकों में अब तक सहाब बाक़ी हैं
वही तो वक़्त की बे-चेहरगी है अपनी शनाख़्त
कि जिस पे अब भी हज़ारों नक़ाब बाक़ी हैं
लहू के फूल ख़िज़ाँ आश्ना नहीं 'तनवीर'
कि दश्त दश्त शफ़क़ के गुलाब बाक़ी हैं
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