कौन पाबंद-ए-जुनूँ फ़स्ल-ए-बहाराँ में न था
इस बरस नंग-ए-जवानी था जो ज़िंदाँ में न था
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वस्ल में भी नहीं मजाल-ए-सुख़न
कम हुई बाँग-ए-जरस भी या-रब
न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से
रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं
कोई इस फ़स्ल में दीवाना हुआ है शायद