न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से
न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से
मैं सर पटका किया इक उम्र संग-ए-सख़्त-जानी से
अदा फ़हमान-ए-शौक़-ए-वस्ल हो तूर-ए-तजल्ली पर
मज़ा दीदार का मिलता है बांग-ए-लनतरानी से
मुरीद-ए-मुर्शिद-ए-हिम्मत हूँ मैं मेरी तरीक़त में
कफ़न भी साथ लाना नंग है दुनिया-ए-फ़ानी से
वो सरगर्म-ए-बयान-ए-सोज़िश-ए-दाग़-ए-मोहब्बत हूँ
हज़र करता है शो'ला भी मिरी आतिश-बयानी से
हमारे ग़ुंचा-ए-दिल को तबस्सुम की न दी फ़ुर्सत
रहा हम को ये शिकवा लुत्मा-ए-बाद-ख़िज़ानी से
शराब-ए-इश्क़ का साग़र दिया है मुझ को साक़ी ने
न उठ्ठूँगा मैं महशर को भी अपनी सरगिरानी से
हमें वो राह बतलाई है ख़िज़्र-ए-इ'श्क़ ने 'ऐशी'
निशान-ए-रफ़्तगाँ पैदा है जिस में बे-निशानी से
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