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इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे - तल्हा रिज़वी बारक़ कविता - Darsaal

इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे

इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे

आ इसी तरह जो मिल जाइए गाहे गाहे

बे-रुख़ी अहल-ए-मोहब्बत से रवा तुम को नहीं

सदक़ा-ए-हुस्न सही मुझ पे निगाहे गाहे

दिल को मिज़्गाँ का तसव्वुर ही बहुत काम आया

डूबते को है सहारा पर-ए-काहे गाहे

आरज़ू है कि तिरे कूचे से हम भी गुज़रें

पैरहन चाक-ब-ईं हाल-ए-तबाहे गाहे

ज़िंदगी ख़त्म हुई बस इसी हसरत में कि वो

मुझ को पास अपने बुलाए मुझे चाहे गाहे

दिल में तस्वीर तुम्हारी न उतारूँ तो कहो

पर्दा-ए-रुख़ भी उठे जल्वा-पनाहे गाहे

'बर्क़'-ए-ग़म-दीदा तिरा मुस्तहिक़-ए-लुत्फ़ हुआ

सुनते हैं अर्श को जा लेती है आहे गाहे

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In Hindi By Famous Poet Talha Rizvi Barq. is written by Talha Rizvi Barq. Complete Poem in Hindi by Talha Rizvi Barq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.