दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो
दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो
शहर-ए-क़ातिल में ज़रा अम्न-ओ-अमाँ होने तो दो
मेरी आह-ए-नीम-शब मंज़िल-नुमा-ए-शौक़ है
नाला-ए-दिल को रहील-ए-कारवाँ होने तो दो
और भी ना-क़द्र-दानी-ए-हुनर याद आएगी
हम-नशीनों को मलाल-ए-रफ़्तगाँ होने तो दो
दिल उधर माइल हुआ ही था कि वहशत बढ़ गई
उस की चाहत को ज़रा आतिश-बजाँ होने तो दो
ख़ाना-ए-बे-रंग भी है शीशा-ए-सद-रंग भी
दिल को पहले बे-नियाज़-ए-ईन-ओ-आँ होने तो दो
सुर्ख़ी-ए-ख़ून-ए-तमन्ना आबरू-ए-इश्क़ है
आरज़ूओं का लहू रंग-ए-बयाँ होने तो दो
है निहाँ मश्क़-ए-सुख़न में फ़िक्र-ओ-फ़न औज-ए-सुख़न
हाँ ज़मीन-ए-शेर को 'बर्क़' आसमाँ होने तो दो
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