वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना
हम ऐसे लम्हे में इक दास्ताँ बनाते हैं
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
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उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था
यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं
ये तेरा दिवाना रात गए मालूम नहीं क्यूँ पहरों तक
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं
ख़िरद नहीं है यहाँ बस जुनून का सौदा
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का
इस तरह तुझे इश्क़ किया है कि ये दुनिया
नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा