उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था
हमीं को शौक़ नहीं था कभी रिहाई का
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ख़िरद नहीं है यहाँ बस जुनून का सौदा
नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं
अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को
सवाल क्या है जवाब क्या है
न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का