सफ़र ही बस कार-ए-ज़िंदगी है
अज़ाब क्या है सवाब क्या है
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(653) Peoples Rate This
ये तेरा दिवाना रात गए मालूम नहीं क्यूँ पहरों तक
हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते
सवाल क्या है जवाब क्या है
बस एक शय मिरे अंदर तमाम होती हुई
उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था
तमाम शहर ही तेरी अदा से क़ाएम है
इंकार भी करने का बहाना नहीं मिलता
हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं
दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को