किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को
इस क़दर तर नहीं कर सकती बला-नोशी भी
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(576) Peoples Rate This
दर्द-आमेज़ है कुछ यूँ मिरी ख़ामोशी भी
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं
आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते
सवाल क्या है जवाब क्या है
वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
बस एक शय मिरे अंदर तमाम होती हुई