ख़िरद नहीं है यहाँ बस जुनून का सौदा
हम इस जुनून से आगे मकाँ बनाते हैं
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हम जब्र-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ नहीं होते
सवाल क्या है जवाब क्या है
अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं
तो क्यूँ इस बार उस ने मेरे आगे सर झुकाया है
उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था
बहुत मुश्किल था मुझ को राह का हमवार कर देना
न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का
फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है
नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
इस तरह तुझे इश्क़ किया है कि ये दुनिया