अक्सर मिरे शेरों की सना करते रहे हैं
वो लोग जो ग़ालिब के तरफ़-दार नहीं हैं
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
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Sharabi Poetry
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ख़िरद नहीं है यहाँ बस जुनून का सौदा
सवाल क्या है जवाब क्या है
वो एक लम्हा जिसे तुम ने मुख़्तसर जाना
ये शहर अपनी इसी हाव-हू से ज़िंदा है
आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे
हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं
यूँ भी तो तिरी राह की दीवार नहीं हैं
बस एक शय मिरे अंदर तमाम होती हुई
ख़ुदा वजूद में है आदमी के होने से
किस की आँखों का नशा है कि मिरे होंटों को