नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा
नज़्ज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा
फिर मैं ने उसे अपने हवस-ज़ार में खींचा
खुलती नज़र आती है क़बा-ए-गुल-ए-मक़्सद
एहसास-ए-तलब ने जो उसे ख़ार में खींचा
है दीदनी गुल-कारी-ए-एहसास-ओ-तख़य्युल
क्या आरिज़-ए-गुल को लब-ए-इज़हार में खींचा
तस्वीर सी इक बन गई क्या जानिए किस की
क़तरों ने नम अपना मिरी दीवार में खींचा
ता-हद्द-ए-नज़र खुलती गई ज़ुल्फ़-ए-दो-आलम
एहसास ये किस का दिल-ए-बेदार में खींचा
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