ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं
फ़ज़ा बहारीं है जिस के जल्वों से वो हरीफ़-ए-बहार हूँ मैं
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हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं
मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए
ख़ुदा मुझ को तुझ से ही महरूम कर दे
बर्दाश्त दर्द-ए-इश्क़ की दुश्वार हो गई
उफ़ वो नज़र कि सब के लिए दिल-नवाज़ है
नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
जिंस-ए-हुनर मज़ाक़-ए-ख़रीदार देख कर
हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे
आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो
कहीं रुस्वा न हों रंगीनियाँ दर्द-ए-मोहब्बत की