दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़
ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे
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मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए
बर्दाश्त दर्द-ए-इश्क़ की दुश्वार हो गई
ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं
ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज
ख़ुदा मुझ को तुझ से ही महरूम कर दे
कहीं रुस्वा न हों रंगीनियाँ दर्द-ए-मोहब्बत की
नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे
आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो
उफ़ वो नज़र कि सब के लिए दिल-नवाज़ है