बर्दाश्त दर्द-ए-इश्क़ की दुश्वार हो गई
अब ज़िंदगी भी जान का आज़ार हो गई
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उफ़ वो नज़र कि सब के लिए दिल-नवाज़ है
ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के दाग़ों से रू-कश-ए-लाला-ज़ार हूँ मैं
हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं
ख़ुदा मुझ को तुझ से ही महरूम कर दे
ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज
कहीं रुस्वा न हों रंगीनियाँ दर्द-ए-मोहब्बत की
नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को
मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए
जिंस-ए-हुनर मज़ाक़-ए-ख़रीदार देख कर
आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो