वो इस कमाल से खेला था इश्क़ की बाज़ी
मैं अपनी फ़तह समझता था मात होने तक
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तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन
लब तक आया गिला हमेशा से
जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है
मिला था हिज्र के रस्ते में सुब्ह की मानिंद
वो जो दरिया के बीच रहता है
तिलिस्म-ए-इश्क़ था सब उस का साथ होने तक
हर मुसाफ़िर के साथ आता है
सावन-रुत और उड़ती पुर्वा तेरे नाम
मेरी आँखों में ख़्वाब हैं जिस के
ज़ख़्म कब का था दर्द उठा है अब
दुनिया-भर में जितने मंज़र अच्छे हैं