मिला था हिज्र के रस्ते में सुब्ह की मानिंद
बिछड़ गया था मुसाफ़िर से रात होने तक
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जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है
लब तक आया गिला हमेशा से
दुनिया-भर में जितने मंज़र अच्छे हैं
ज़ख़्म कब का था दर्द उठा है अब
वो इस कमाल से खेला था इश्क़ की बाज़ी
तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन
हर मुसाफ़िर के साथ आता है
तिलिस्म-ए-इश्क़ था सब उस का साथ होने तक
वो जो दरिया के बीच रहता है
सावन-रुत और उड़ती पुर्वा तेरे नाम