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शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी - ताज सईद कविता - Darsaal

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

हर शजर हर पेड़ की क़िस्मत में अब तन्हाई थी

जीने वालों का मुक़द्दर शोहरतें बनती रहीं

मरने वालों के लिए अब दश्त की तन्हाई थी

चश्म-पोशी का किसी ज़ी-होश को यारा न था

रुत सलीब-ओ-दार की इस शहर में फिर आई थी

मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर

मेरे पीछे भागती फिरती मिरी रुस्वाई थी

बारिशों की रुत में कोई क्या लिखे आख़िर 'सईद'

लफ़्ज़ के चेहरों की रंगत भी बहुत धुँदलाई थी

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In Hindi By Famous Poet Taj Saeed. is written by Taj Saeed. Complete Poem in Hindi by Taj Saeed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.