ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो
इश्क़ आसाब को मज़बूत बना देता है
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ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से
सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग
वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा
तुझे मैं अपना नहीं समझता इसी लिए तो
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
ज़िंदगी भर की रियाज़त मिरी बे-कार गई
मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे
ख़ुशी ज़रूर थी 'तैमूर' दिन निकलने की
ये जंग जीत है किस की ये हार किस की है
बहार आने की उम्मीद के ख़ुमार में था