वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
ख़्वाब दरिया के किनारों को मिला देता है
ज़िंदगी भर की रियाज़त मिरी बे-कार गई
इक ख़याल आया था बदले में वो क्या देता है
अब मुझे लगता है दुश्मन मिरा अपना चेहरा
मुझ से पहले ये मिरा हाल बता देता है
चंद जुमले वो अदा करता है ऐसे ढब से
मेरे अफ़्कार की बुनियाद हिला देता है
ये भी एजाज़-ए-मोहब्बत है कि रोने वाला
रोते रोते तुझे हँसने की दुआ देता है
ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो
इश्क़ आसाब को मज़बूत बना देता है
बैठे बैठे उसे क्या होता है जाने 'तैमूर'
जलता सिगरेट वो हथेली पे बुझा देता है
ये जहाँ इस लिए अच्छा नहीं लगता 'तैमूर'
जब भी देता है मुझे तेरा गिला देता है
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